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हाल ही में मद्रास उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने कहा है कि उसी अदालत के एक अन्य न्यायाधीश द्वारा हाल ही में पारित एक आदेश जिसमें स्पा [मालिश और चिकित्सा केंद्र] के अंदर सीसीटीवी कैमरे लगाने को अनिवार्य किया गया है, सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले के.एस पुट्टस्वामी मामला (2017) के विपरीत प्रतीत होता है।
- इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह घोषणा की थी कि अनुच्छेद 21 में गारंटीकृत प्राण और दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार में निजता का अधिकार भी शामिल है।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- अंतर्निहित मूल्य : निजता के इस अधिकार को मूल अधिकार के रूप में देखा जाता है:
- निहित मूल्य (Inherent value): यह प्रत्येक व्यक्ति की मूल गरिमा के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- वाद्य मूल्य (Instrumental value): यह किसी व्यक्ति के हस्तक्षेप से मुक्त जीवन जीने की क्षमता को आगे बढ़ाता है।
- दैहिक स्वतंत्रता/शारीरिक स्वायत्तता का अधिकार
- सूचनात्मक गोपनीयता का अधिकार
- पसंद का अधिकार।
- इस प्रकार, स्पा जैसे किसी परिसर के भीतर सीसीटीवी उपकरण की स्थापना निस्संदेह किसी व्यक्ति की दैहिक स्वतंत्रता के खिलाफ होगी।
- ये अनुल्लंघनीय स्थान हैं जहाँ राज्य सरकार को नज़र रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती
- इस सिद्धांत के तहत यह माना गया है कि, यद्यपि कोई अधिकार पूर्ण नहीं हो सकता है इसलिये केवल विधायिका या कार्यपालिका द्वारा ही प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
- इसके अलावा, सर्वोच्च न्यायालय अकेले ही अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करके ऐसा कर सकता है।
निजता का अधिकार
- परिचय:
- आमतौर पर यह समझा जाता है कि गोपनीयता अकेला छोड़ दिये जाने के अधिकार (Right to Be Left Alone) का पर्याय है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2017 में के.एस. पुत्तास्वामी बनाम भारतीय संघ ऐतिहासिक निर्णय में गोपनीयता और उसके महत्त्व को वर्णित किया। सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, निजता का अधिकार एक मौलिक और अविच्छेद्य अधिकार है और इसके तहत व्यक्ति से जुड़ी सभी सूचनाओं के साथ उसके द्वारा लिये गए निर्णय शामिल हैं।
- निजता के अधिकार को अनुच्छेद 21 के तहत प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार के आंतरिक भाग के रूप में तथा संविधान के भाग-III द्वारा गारंटीकृत स्वतंत्रता के हिस्से के रूप में संरक्षित किया गया है।
- इस अधिकार को केवल राज्य कार्रवाई के तहत तभी प्रतिबंधित किया जा सकता है, जब वे निम्नलिखित तीन परीक्षणों को पास करते हों :
- पहला, ऐसी राजकीय कार्रवाई के लिये एक विधायी जनादेश होना चाहिये;
- दूसरा, इसे एक वैध राजकीय उद्देश्य का पालन करना चाहिये;
- तीसरा, यह यथोचित होनी चाहिये , अर्थात् ऐसी राजकीय कार्रवाई- प्रकृति और सीमा में समानुपाती होनी चाहिये, एक लोकतांत्रिक समाज के लिये आवश्यक होनी चाहिये तथा किसी लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु उपलब्ध विकल्पों में से सबसे कम अंतर्वेधी होनी चाहिये।